Friday, September 14, 2012

aaj kaa sai sandesh

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

हर भाव में हर रूप में पाया उन्हें भगवंत
श्री साईंनाथ अनंत उनकी कथा है अनंत
दत्तात्रेय-जगदीश्वर का रूप थे साईं
श्रद्धा-सबुरी और भक्ति साईं से पाई
सीधा-सादा रूप था श्री साईंनाथ का
जिसने भी देखा वो हो गया साईंनाथ का
दर्शन इनके जो भी एक बार पा गया
भव-बंधन से पल में वो मुक्ति पा गया
साईं की दृष्टि में न कोई ऊंचा न नीचा
हर एक को साईं ने अपने प्रेम से सींचा
शिर्डी नगर को आटे से ऐसे बंधाया
कि हैजे से शिर्डी को एक पल में बचाया

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

बाबा कि लीलाओं को जो भी ध्यान से सुनता
मिलती है उसे मुक्ति, परमधाम है मिलता
रोहिला के कुविचार को जब ख़त्म साईं ने किया
तो जड़ चेतन में खुद होने का भान दे दिया
गौली बुवा की श्रद्धा से साईं विट्ठल भी बने
काका को भी उसी भाव में दर्शन दे दिए
बाबा ने गुरु महिमा को ऐसा मान दे दिया
की गुरु के स्थान को पूजास्थल बना दिया
बाबा ने श्रद्धा का एक चमत्कार दिखाया
दासगणु को निज चरणों में ही प्रयाग दिखाया
यौगिक क्रियाओं का साईं को था अद्भुत ज्ञान
पर इस बात का कभी था ना कोई मान

श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए..........

“SAI BHAKTI DHARA” is a team of Sai Devotees dedicated to Shri Sachchidanand Sadguru Sainath Maharaj of Shirdi working with the aim of spreading knowledge about teachings/sayings of Shri Sainath Maharaj among others, especially the new generation in India and all over the world.

With this motive we publish a monthly magazine “SAI BHAKTI DHARA” (Hindi & English) and distr

ibute it among devotees ‘FREE OF COST’. This magazine comprises of various sayings/teachings of Sai, articles/poems etc. written by eminent writers and Sai devotees and news related to activities organized by Sai devotees in India and abroad.

To spread knowledge about Sai, we also telecast TV programme “SAI BHAKTI DHARA” on various religious TV channels like DIVYA TV, etc. from time to time. By the grace of Shri Sainath Maharaj and great appreciation and support from the devotees from all over the world, we have also started facility of world-wide Live Telecast of Events related to SAI BABA on “SAI BHAKTI DHARA CHANNEL” through Internet. Through this programme we try to encourage and promote various events/programmes such as Sai Bhajan Sandhyas, Seminars on Sai’s Teachings and various other activities organized by Sai devotees/organizations/NGOs to spread the teachings of Sai Baba among the people all over the world. We are getting a great appreciation of devotees/viewers from all over the world. If you want yourself to be part of “SAI BHAKTI DHARA” just log on to our website www.saibhaktidhara.com or contact us on our contact details. AUM SAI RAM…SABKA MALIK EK. we are going start 16sep 2012 one off 30 minute episode name off SAI SHYAM SO WE ARE REQUEST U PLS JOIN hands and pramote u r bhajans and sai sandhyaas shyaam utsav cont-9871785299,8800408940

Tuesday, September 11, 2012

aaj kaa sai sandesh

गुरुभक्ति की कठिन परीक्षा
..........................
अब देखिये, दूसरे आदेश की भी बाबा ने क्या दुर्दशा की । वह आदेश लागू रहते समय कोई मसजिद में एक बकरा बलि देने को लाया । वह अत्यन्त दुर्बल, बूढ़ा और मरने ही वाला था । उस समय मालेगाँव के फकीर पीरमोहम्मद उर्फ बड़े बाबा भी उनके समीप ही खड़े थे । बाबा ने उन्हें बकरा काटकर बलि चढ़ाने को कहा । श्री साईतबाबा बड़े बाबा का अधिक आदर किया करते थे । इस कारण वे सदैव उनके दाहिनीओर ही बैठा करते थे । सबसे पहने वे ही चिलम पीते और फिर बाबा को देते, बाद में अन्य भक्तों को । जब दोपहर को भोजन परोस दिया जाता, तब बाबा बड़े बाबा को आदरपूर्वक बुलाकर अपने दाहिनी ओर बिठाते और तब सब भोजन करते । बाबा के पास जो दक्षिणा एकत्रित होती, उसमेंसे वे 50 रु. प्रतिदिन बड़े बाबा को दे दिया करते थे । जब वे लौटते तो बाबा भी उनके साथ सौ कदम जाया करते थे । उनका इतना आदर होते हुए भी जब बाबा ने उनसे बकरा काटने को कहा तो उन्होंने अस्वीकार कर स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि बलि चढ़ाना व्यर्थ ही है । तब बाबा ने शामा से बकरे की बलि के लिये कहा । वे राधाकृष्ण माई के घर जाकर एक चाकू ले आये और उसे बाबा के सामने रख दिया । राधाकृष्माई को जब कारण का पता चला तो उन्होंने चाकू वापस मँगवालिया । अब शामा दूसरा चाकू लाने के लिये गये, किन्तु बड़ी देर तक मसजिद में न लौटे । तब काकासाहेब दीक्षित की बारी आई । वह सोना सच्चा तो था, परन्तु उसको कसौटी पर कसना भी अत्यन्त आवश्यक था । बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा । वे साठेवाड़े से एक चाकू ले आये और बाबा की आज्ञा मिलते ही काटने को तैयार हो गये । उन्होंने पवित्र ब्राहमण-वंश में जन्म लिया था और अपने जीवन में वे बलिकृत्य जानते ही न थे । यघपि हिंसा करना निंदनीय है, फिर भी वे बकरा काटने के लिये उघत हो गये । सब लोगों को आश्चर्य था कि बड़े बाबा एक यवन होते हुए भी बकरा काटने को सहमत नहीं हैं और यह एक सनातन ब्राहमण बकरे की बलि देने की तैयारी कर रहा है । उन्होंने अपनी धोती ऊपर चढ़ा फेंटा कस लिया और चाकू लेकर हाथ ऊपर उठाकर बाबा की अन्तिम आज्ञा की प्रतीक्षा करने लगे । बाबा बोले, अब विचार क्या कर रहे हो । ठीक है, मारो । जब उनका हाथ नीचे आने ही वाला था, तब बाबा बोले ठहरो, तुम कितने दुष्ट हो । ब्राहमण होकर तुम बके की बलि दे रहे हो । काकासाहेब चाकू नीचे रख कर बाबा से बोले आपकी आज्ञा ही हमारे लिये सब कुछ है, हमें अन्य आदेशों से क्या । हम तो केवल आपका ही सदैव स्मरण तथा ध्यान करते है और दिन रात आपकी आज्ञा का ही पालन किया करते है । हमें यह विचार करने की आवश्यकता नहीं कि बकरे को मारना उचित है या अनुचित । और न हम इसका कारण ही जानना चाहते है । हमारा कर्तव्य और धर्म तो निःसंकोच होकर गुरु की आज्ञा का पूर्णतः पालन करने में है । तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैं स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करुँगा । तब ऐसा निश्चित हुआ कि तकिये के पास जहाँ बहुत से फकीर बैठते है, वहाँ चलकर इसकी बलि देनी चाहिए । जब बकरा वहाँ ले जाया जा रहा था, तभी रास्ते में गिर कर वह मर गया ।
भक्तों के प्रकार का वर्णन कर श्री. हेमाडपंत यह अध्याय समाप्त करते है । भक्त तीन प्रकार के है

1. उत्तम
2. मध्यम और
3. साधारण

प्रथम श्रेणी के भक्त वे है, जो अपने गुरु की इच्छा पहले से ही जानकर अपना कर्तव्य मान कर सेवा करते है । द्घितीय श्रेणी के भक्त वे है, जो गुरु की आज्ञा मिलते ही उसका तुरन्त पालन करते है । तृतीय श्रेणी के भक्त वे है, जो गुरु की आज्ञा सदैव टालते हुए पग-पग पर त्रुटि किया करते है । भक्तगण यदि अपनी जागृत बुद्घि और धैर्य धारण कर दृढ़ विश्वास स्थिर करें तो निःसन्देह उनका आध्यात्मिक ध्येय उनसे अधिक दूर नहीं है । श्वासोच्ध्वास का नियंत्रण, हठ योग या अन्य कठिन साधनाओं की कोई आवश्यकता नहीं है । जब शिष्य में उपयुक्त गुणों का विकास हो जाता है और जब अग्रिम उपदेशों के लिये भूमिका तैयार हो जाती है, तभी गुरु स्वयं प्रगट होकर उसे पूर्णता की ओर ले जाते है । अगले अध्याय में बाबा के मनोरंजक हास्य-विनोद के सम्बन्ध में चर्चा करेंगे
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 23)

Sunday, September 9, 2012

aaj kaa sai sandesh


शिरडी के सौभाग्य का वर्णन कौन कर सकता है। श्री द्घारिकामाई भी धन्य है, जहाँ श्री साई ने आकर निवास किया और वहीं समाधिस्थ हुए।
शिरडी के नर-नारी भी धन्य है, जिन्हें स्वयं साई ने पधारकर अनुगृहीत किया और जिनके प्रेमवश ही वे दूर से चलकर वहाँ आये। शिरडी तो पहले एक छोटा सा ग्राम था, परन्तु श्री साई के सम्पर्क से विशेष महत्त्व पाकर वह एक तीर्थ-क्षेत्र में परिणत हो गया।
शिरडी की नारियां भी परम भाग्यशालिनी है, जिनका उनपर असीम और अडिग विश्वास प्रशंसा के परे है । आठों प्रहर काम काज करते, पीसते, अनाज निकालते, गृहकार्य करते हुये वे उनकी कीर्ति का गुणगान किया करती थी। उनके प्रेम की उपमा ही क्या हो सकती है? वे अत्यन्त मधुर गायन करती थी, जिससे गायकों और श्रोतागण के मन को परम शांति मिलती थी।
(श्री साई सच्चरित्र, अध्याय 39)

Thursday, September 6, 2012


भिक्षा देदे माई भिक्षा देदे माई
तेरे द्वार पे चलके आया शिरडी वाला साँई
भिक्षा देदे माई

चिमटा कटोरा सटका लेकर भिक्षा माँगने आए
तू दे न दे फिर भी साँई आशिष दे कर जाए
भिक्षा देदे माई

देवे भिक्षा उसको साँई दस पट कर लौटाए
ना भी दे तो हरपल साँई उसका भार उठाए
भिक्षा देदे साँई

दान धरम से भोग है कटता यह बतलाने आए
एक इशारा हो जाए उसका भव से तू तर जाए
भिक्षा देदे माई

रूप बदलना आदत उसकी घर भक्तों के जाए
रोटी टुकड़ा भिक्षा मांगे असली रूप छिपाए
भिक्षा देदे माई

तेरे द्वार पे चलकर आया शिरडी वाला साँई
भिक्षा देदे माई
 

aaj kaa sai sandesh



तुझको दी धडकनें सांस के वास्ते  |
तुझको आँखों के तोहफे दिए इसलिए  -
अपने खालिक की रहमत को देखे सदा |
तुझको सब कुछ मिला

 
 
तुझको आवाज़ दी नाम लेता रहे |
साईं विश्वास से काम लेता रहे |
रोशनी के लिए तुझको दी आत्मा |
तुझको सब कुछ मिला
 
तुझको बदल दिए ताकी बरखा मिले |
साईं छाया मिली ताकी रक्षा मिले |
कहेदो दिन के पतझड़ से घबरा गया |
तुझको सब कुछ मिला
 
हादसे भी दिए, हौसले भी दिए |
तुझको दिन मुश्किलें, रास्ते भी दिए |
दूर मंजिल सही, कम हुआ फासला  |
तुझको सब कुछ मिला
 
खुद-ब-खुद पायेगा जिसका हक़दार है |
किस समय कौन-सी चीज़ दरकार है |
क्या बताएगा तू, उसको है सब पता |
तुझको सब कुछ मिला
 
इस अदालत में कानून तेरा नहीं |
कौन-सा दुःख है जिसका सवेरा नहीं |
दिल से हर दम किये जा यही इक दुआ |
तुझको सब कुछ मिला

Wednesday, September 5, 2012

aaj kaa sai sandesh


श्री साई की इच्छा के बिना कोई भक्त उनके पास पहुँच ही न सकता था। यदि उनके शुभ कर्म उदित नहीं हुए है तो उन्हें बाबा की स्मृति भी कभी नहीं आई और न ही उनकी लीलायें उनके कानों तक पहुँच सकी। तब फिर बाबा के दर्शनों का विचार भी उन्हें कैसे आ सकता था? अनेक व्यक्तियों की श्री साईबाबा के दर्शन की इच्छा होते हुए भी उन्हें बाबा के महासमाधि लेने तक कोई योग प्राप्त न हो सका। अतः ऐसे व्यक्ति जो दर्शनलाभ से वंचित रहे है, यदि वे श्रद्घापूर्वक साईलीलाओं का श्रवण करेंगे तो उनकी साई-दर्शन की इच्छा बहुत कुछ सीमा तक तृप्त हो जायेगी। भाग्यवश यदि किसी को किसी प्रकार बाबा के दर्शन हो भी गये तो वह वहाँ अधिक ठहर न सका। इच्छा होते हुए भी केवल बाबा की आज्ञा तक ही वहाँ रुकना संभव था और आज्ञा होते ही स्थान छोड़ देना आवश्यक हो जाता था। अतः यह सब उनकी शुभ इच्छा पर ही अवलंबित था।

Monday, September 3, 2012

jai sai ram


श्री साई की इच्छा के बिना कोई भक्त उनके पास पहुँच ही न सकता था। यदि उनके शुभ कर्म उदित नहीं हुए है तो उन्हें बाबा की स्मृति भी कभी नहीं आई और न ही उनकी लीलायें उनके कानों तक पहुँच सकी। तब फिर बाबा के दर्शनों का विचार भी उन्हें कैसे आ सकता था? अनेक व्यक्तियों की श्री साईबाबा के दर्शन की इच्छा होते हुए भी उन्हें बाबा के महासमाधि लेने तक कोई योग प्राप्त न हो सका। अतः ऐसे व्यक्ति जो दर्शनलाभ से वंचित रहे है, यदि वे श्रद्घापूर्वक साईलीलाओं का श्रवण करेंगे तो उनकी साई-दर्शन की इच्छा बहुत कुछ सीमा तक तृप्त हो जायेगी। भाग्यवश यदि किसी को किसी प्रकार बाबा के दर्शन हो भी गये तो वह वहाँ अधिक ठहर न सका। इच्छा होते हुए भी केवल बाबा की आज्ञा तक ही वहाँ रुकना संभव था और आज्ञा होते ही स्थान छोड़ देना आवश्यक हो जाता था। अतः यह सब उनकी शुभ इच्छा पर ही अवलंबित था।

jai sai ram


sai pranam


Saturday, September 1, 2012

JAI SHRI SHYAM


sai bhaktidhara

जगत के रंग क्या देखू ,तेरा दीदार काफी है ,
                                                   करू मैं प्यार किस किस से तेरा एक प्यार काफी है ,
                                                    नहीं चाहिए ये दुनिया के निराले रंग ढंग मुझको ,
                                                        चला आऊ मैं शिर्डी तेरा दरबार काफी है ,
                                                                 जगत के रंग क्या देखू .....
                                                           अपना चंदा सा मुखड़ा दिखाए जा.....
                                                           अपना चंदा सा मुखड़ा दिखाए जा......
                                                ओ मेरे शिर्डी वाले अपनी ही धुन में मुझे मिलाये जा

                               ॐ साईं राम जय साईं राम ....................


Om Sai Ram with the Blessing Of Sai Baba We are Going Telecaste TODAY DOING LIVE FROM DELHI VISHAL SAI BHAJAN SANDHYA SUNG BY SURENDER SAXENA(SAXENABANDHU) CO-09654858202 WATCH LIVE LOG ON www .sai-bhaktidhara.blogspot.in

Sai Bhakti Dhara Live